
ज़िन्दगी ये बर्फ सी
अनिश्चितता पर तर्क सी ।।
पिघल रही घड़ी घड़ी
कल की फिक्र क्यों पड़ी ।।
बर्फ यह तो ठोस है
जैसे हमारा रोष है ।।
कहता तापमान इसे
पिघलने में ही मोक्ष है ।।
जो पिघल रहा वो कह रहा
“मैं पानी, मस्त बह रहा ” ।।
क्योंकि, बहना ही सत्य है
ठहरना जड़त्व है ।।
समझें इस आशय को
भीतर के महाशय को ।।
क्यों करें चिंता, मानो
ठहरा जलाशय हो ।।
कर जाएँ, कह जाएँ
चाहतें इस जीवन की
अधूरी ना रह जाये ।।
– प्रखर
बहुत ही बढ़िया कविता
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धन्यवाद 🙏🙏☺️☺️
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bahut badhiya
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धन्यवाद 🙏🙏☺️☺️
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Waah Bandhu!! ati-sundar!
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