
ज़िन्दगी ये एक सफर ।
अगर मगर की डगर ।।
ध्यान से चला कोई
अनजान बन चला कोई
अभिमान से कोई चला
तो कोई स्वाभिमान से ।।
कोई रुका आलस्य में
कोई थका प्रमाद में
कुछ अकेले ना चल सके
थमे किसी की याद में ।।
जो थम गए तो चौपट है
मंज़िल का बन्द चौखट है
मुड़ गए हो अब जब तुम
निराशा की नौबत है ।।
किंचित खुश हो कर के
आगे बढ़ ठोकर से
अग्रसर जो हो जाये
कल्पवृक्ष बो जाए ।।
-प्रखर
बिलकुल सही कहा। थम गए तो चौपट है।
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🙏🙏☺️☺️
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जो अगर मगर से उपर उठ गए,
वो ही मंजिल को पा गए।
बढ़िया रचना 👌👌
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