
अनिश्चितता का दौर है
अंधेरा घनघोर है
विवशताओं की होड़ है
पग पग पर मोड़ है ।।
चल रहा मैं रुक रुक कर
रखता कदम फूँक फूँक कर
तब भी धँस जाता हूँ
दल दल में फँस जाता हूँ
संभावनाएँ कह रहीं
“मैं आते आते रह गई”
“जो तुमको बचा पाती”
“अगर मगर में ढह गई” ।।
अब प्रयास और प्रबल होगा
सुदृढ़ मनोबल होगा
देखता हूँ मैं भी अब
किसमें रोकने का बल होगा ।।
अब मैं अनुभवहीन नहीं
बिल्कुल भी दीन नहीं
प्रचंडता इरादों में
शक्तियाँ भी क्षीण नहीं ।।
गांडीव को उठाकर अब
लक्ष्य भेदता चुन चुन
सारथी मेरी आत्मा
मन मेरा स्वयं अर्जुन ।
✍️© प्रखर
“सारथी मेरी आत्मा
मन मेरा स्वयं अर्जुन”
👌👌👌👌
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धन्यवाद🙏🙏☺️☺️
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waah yaar! kya sundar likha hae.. aur inspiring bhi. Kudos!
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Dhanyawaad 🙏☺️
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Bahut sundar
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