
वो गुज़रता हुआ समस्या से,
हल ढूँढता पूरी तपस्या से,
भावी अनिश्चितता में जी रहा,
चिंता चुनौतियों के कड़वे प्याले पी रहा ।।
सिलसिला ये रुकने का नाम ले अगर,
ठहर कर सोचने का काल हो मगर,
सुलझ पाएगा कब चुनौतियों का फंदा ??
जब समस्याओं को कतई ना बनाएँगे प्रमुख मुद्दा ।।
कपाल पर आते हुए बोझ का क्या वेग है !
छुपे कंटकों से लबालब भरी हुई यह सेज है,
घने अंधियारे में यदि वो भाग सकता तेज़ है,
निस्तार कर जाएगा सरहद, देखना यह शेष है ।।
देखना जो शेष है, उस पर विवश क्यूँ हो रहा,
देवव्रत सम बाण की शैया पे कब से सो रहा,
आत्मभू तू है नहीं फिर क्यूँ स्वयं से मर मिटे,
डगमगा जाएँगी अड़चन, उत्साह यदि नित बो रहा ।।
-प्रखर
क्या बात, बहुत खूब
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Thank you 🙏☺️
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Very nice and true
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Thank you dear 😊
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Shabd👏👏👏
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चिंतन योग्य, विचारणीय
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धन्यवाद 🙏☺️
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