
नल के नीचे बूंद बूंद, या
सागर में आँखें मूँद मूँद,
सब दृष्टिकोण की क्रीड़ा है
जो ना समझे तो पीड़ा है ।।
सूर्य स्वयँ हो या किरणें
भिन्न है दोनों क्या ? बोलो,
दोनों में समरूप हैं गुण
बन्द बुद्धि के पट खोलो ।।
देह मात्र के स्वामी बन कर
पृथक कहाँ कुछ सूझेगा,
आत्मरूप की कठिन पहेली
भला कहाँ से बूझेगा ।।
यह आत्मा ही तो बूँद बूँद है
परमात्म से मिलती आँख मूँद है,
यह मिलन माँगता शक्ति है
पर अवरोधक आसक्ति है ।।
आध्यात्म के झिल्लड़ ऐनक से
यह अवरोधक मिट जाता है,
मनु योनि में आकर विवेक का
उपयोग तभी हो पाता है ।।
सत् , चित् , आनंद सभी
फलस्वरूप मिल पाता,
सही अर्थ में मनुष्य तब
सच्चिदानन्द कहलाता ।।
©प्रखर
बहुत सुन्दर पँक्तियाँ प्रखर।👍😊
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धन्यवाद 🙏🙏☺️
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